छत्तीसगढ़ में सिकलसेल रोग की त्वरित पुष्टि हेतु पायलेट परियोजना

रायपुर
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा सिकलसेल के संदेहात्मक प्रकरणों की पहचान करने के लिए विगत दो वर्षों में बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग की गई है। स्क्रीनिंग में 1.03 लाख बालक-बालिकाओं को सिकलसेल के संदेहात्मक प्रकरणों के रूप में चिन्हाकित किया गया है ऐसे संदेहात्मक बच्चों अथवा व्यस्कों में सिकलसेल रोग की पुष्टि के लिए जांच अब तक मुख्यत: बड़े शासकीय अस्पतालों में उपलब्ध रहती थी। जांच सेवाओं से दूरी के कारण बहुत से संदेहात्मक चिन्हांकित व्यक्तियों की सिकलसेल पुष्टि हेतु जांच समय पर पूर्ण करने में कठिनाई आती थी। इस समस्या को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा एक अभिनव पायलेट परियोजना आरंभ की जा रही है। यह पाइंट आॅफ केयर टेस्ट तकनीक अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा प्रमाणित है इस नई तकनीक का उपयोग कर सिकलसेल रोग की पुष्टि हेतु जांच ग्राम स्तर पर एवं छोटे स्वास्थ्य केन्द्रों में भी सरलता से की जा सकेगी। सिकलसेल रोग प्रबंधन कार्यक्रम में इस तकनीक को जोड?े वाला छत्तीसगढ़ देश का प्रथम राज्य होगा।

परियोजना का शुभांरभ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा शुक्रवार को किया गया। परियोजना की शुरूआत प्रदेश के 5 जिलों दुर्ग, सरगुजा, दंतेवाड़ा. कोरबा व महासमुद से की जा रही है। इस जांच किट के उपयोग पर राज्य स्तरीय प्रशिक्षण इण्डियन काउसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च के मुम्बई स्थित संस्थान नेशनल इन्सीट्यूट आॅफ इमियुनो-हिमैटोलॉजी के विशेषज्ञो द्वारा प्रदाय किया जा रहा है। आगामी सप्ताह में जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं का प्रशिक्षण पूर्ण कर सिकलसेल रोग की समय पर पुष्टि करने का कार्य सम्पादित किया जायेगा।

आज के समय में सिकलसेल एक असाध्य रोग नहीं है आज ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं जिससे सिकलसेल रोगी पीड़ारहित एव लम्बी आयु तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। इससे लाभान्वित होने के लिए जरूरी है कि समय पर सिकलसेल रोग की पहचान हो पाये । छत्तीसगढ़ में आरम की जा रही यह पायलेट परियोजना जांच को समुदाय के निकट पहुंचा कर समय पर सिकलसेल रोगियों की पुष्टि को संभव बनायेगी शीघ्र पहचान होने से सिकलसेल रोगियों को चिकित्सा का लाभ समय पर मिल पायेगा इससे सिकलसेल रोग के कारण बच्चों एवं व्यस्कों में मृत्यु दर को कम किया जा सकेगा। गर्भवती महिलाओं में समय पर जांच से मातृ एवं नवजात मृत्युदर को कम करने में भी मदद मिलेगी।

Source : Agency

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